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सिक्के के दो पहलू

अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक मित्र मंडल जबलपुर मध्य प्रदेश
व्हाट्सएप प्रतियोगिता
विषय- सिक्के के दो पहलू
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माना सिक्का एक है।
पहलू उसके दो है।
मोहब्बत को देखो तुम।
जिंदगी में नूर भर देती हैं।
नफरत को देखो तुम।
जीना दुश्वार कर देती है।
ना घबराओ तुम इन दो पहलू से।
दोनों का अपना-अपना मकसद है।
फूल जब खिलता है।
बागों में रोनके आ जाती है।
जब वह मुरझा जाए।
हमदर्दी का कोई सहारा ना रह जाए।
जब दिल खुश होता है।
खुद में गुनगुनाने लगते हैं।
जब यह उदास हो जाए।
महफिले भी दोजक लगने लगती हैं।
माना सिक्का एक है।
पहलू उसके दो है।
नूर- ए -नजर तेरी है।
प्यार -ए -मोहब्बत मेरी है।

लेखिका शबा राव
आईडी क्रमांक 1692
रुड़की हरिद्वार उत्तराखंड

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